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माँ बगलामुखी की उत्पत्ति
देवी बगलामुखी की उत्पत्ति के बारे में प्रचलित कथा का वर्णन- सतयुग की बात है, ब्रह्मांड में एक भयंकर तूफान आने पर पूरी सृष्टि नष्ट होने के कगार पर आ गया. तब भगवान विष्णु नें सर्वशक्तिमान और देवी बगलामुखी का आह्वान किया. उन्होने सौराष्ट (काठियावर) के हरिद्रा सरोवर के पास उपासना किए. उनके इस तप से श्रीविध्या का तेज उत्पन्न हुआ. तप की उस रात्रि क़ो बीर रात्रि के रूप में जाना जाता है. तप का वह दिन चतुरदर्शी मंगलवार था.माँ बगलामुखी उस सरोवर में निवास की जिसके जल का रंग हल्दी समान पीलापन लिए हुए था. उस अर्ध रात्रि को भगवान विष्णु की तपस्या से संतुष्ट होकर माँ बगलामुखी ने सृष्टिविनाशक तूफान क़ो शान्त किए,तांत्रिक इनकी अराधना पंच मकार का सेवन करके करतें हैं. श्रीविध्या के प्रकाश से द्वितीय त्रिलोक स्तम्भनि ब्रह्मस्त्र विध्या प्रकट हुआ. शक्ति जो ब्रह्मस्त्र विध्या से उत्पन्न हुआ वह भगवान विष्णु के शक्ति मे विलीन हो गया.एक मदन नाम का राक्षस काफी कठिन तपस्या करके वाक् सिद्धि के वरदान को पाया था. उसने इस वरदान का गलत इस्तेमाल करना शुरू किया और निर्दोष लाचार लोगों को परेशान करने लगा. उसके इस घृणित कार्य से परेशान होकर देवताओं ने माँ बगलामुखी का अराधना किए. माँ ने असुर के हिंसात्मक आचरण को अपने वाएं हाथ से उसके जीभ को पकर कर और उसके वाणी को स्थिर कर रोक दिए.माँ बगलामुखी जैसे-ही मारने के लिए दाहिने हाथ में गदा उठाई असुर के मुख से निकाला मैं इसी रूप में आपके साथ दर्शाया जाएँ. तब से देवी बगलामुखी के साथ दर्शाया गया है.
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“यह तर्क से परे है कि भारतीय सर्वशक्तिमान बगलामुखी महाविद्या, जो हजारों शत्रुओं के लिए पर्याप्त है, से भयभीत क्यों रहते हैं।” – समरफ़ील्ड।